Tuesday 9 October 2012

pyar ki kahani

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रेगिस्तान में घर था                   
पत्थरों की थी    ज़मीन
काटों  का जिस्म था
पर नाज़ुक था दिल

मुसाफिर एक गुज़रा
बन के हवा का झोंका
मुहब्बत की  दस्तक पर
काटों का जिस्म सिहरा

इश्क और मुश्क
छुपाये नहीं हैं छुपते
काटों में फूल बन कर
खिल उठते हैं रिश्ते

आशिक की दस्तक ने   
जज्बातों को झकझोरा
काटों में खिला फूल  
आशिक को ढूँढने   निकला  

जब बीत गए दिन कुछ 
नज़रों ने सुकून पाया 
खुदा को अपने देख 
फूल झूम के लहराया

पावों में बांध घुंघरू
थिरकने लगी वो हरदम
ऐसा लगा की जैसे
साँसों ने जान पाई
 
दिन बीतने लगे
हीरे के बन के जैसे
रातें भी बन के चांदी
लेने लगी अंगड़ाई

साथ लगा बढने
वक़्त थम गया था 
खुशियों  से भरा जीवन 
इक संग गुज़र गया था 

अब वो खड़ी अकेले 
याद कर रही है
गुज़रे हुए दिनों को 
और मुस्कुरा रही है 
खुशिया है अभी बाकी 
है साथ दोनों अब भी 
प्यार तब बहुत था 
है उतना ही प्यार अब भी  

4 comments:

  1. There is emotion that tug your heart, Rajni. I think I have read this one before, not sure though :)

    Loved your DP. love these flowers ~

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    Replies
    1. Thanks ghazala

      and am glad you liked the flowers---white flowers are my favourite.:))

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  2. Replies
    1. Thankyou so much Amit ji for appreciaiting

      regards
      rajni

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